Bharat Ki Sabse Pehli Film Kaun Si Hai? Pehli Film Ka Naam.

भारतीय फिल्म सिनेमा पहली से ही काफी प्रचलित रहा हैं। जितनी रुचि यहाँ लोगो मे फ़िल्म व खेल को लेकर हैं। उसको ध्यान में रखते हुए हर वर्ष billion डॉलर्स का व्यापार फ़िल्म सिनेमा जगत से होता हैं। आज वर्तमान समय मे जो बड़े पर्दे पर हम नई नई मूवीज देख रहे हैं इसके पीछे बहुत पुराना इतिहास हैं।

जी हाँ, कभी अपने सोचा हैं कि भारत की सबसे पहली फ़िल्म कब बनी व उसका नाम क्या हैं। शायद कुछ ही लोगो को इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी हो। पहले सिनेमा जगत में बस चित्र के आधार ओर फ़िल्म आती थी, जिसमे ऑडियो सिस्टम नही था। परंतु काफी प्रयशो के बाद पहली बोलती फ़िल्म लोगो के सामने आयी। तबसे लेकर आज तक भारतीय सिनेमा ने एक से एक बेहतर मूवी प्रस्तुत की हैं। 

Bharat Ki Sabse Pehli Film.

भारत की सबसे पहली फ़िल्म का नाम राजा हरिश्चन्द्र था, जिसे दादा साहब फाल्के के द्वारा बनाया गया। भारतीय फ़िल्म जगत में शरुआत से ही काफी संघर्ष देखने को मिला हैं। जिसके चलते पहले अधिकतर फ़िल्म ब्लैक एंड वाइट स्क्रीन पर देखी जाती थी। 1913 दादा साहब फाल्के की मूक राजा हरिश्चंद्र (1913) भारत में बनी पहली फीचर फिल्म है। 1930 के दशक तक, उद्योग प्रति वर्ष 200 से अधिक फिल्मों का निर्माण कर रहा था। पहली भारतीय ध्वनि फिल्म, अर्देशिर ईरानी की आलम आरा (1931), व्यावसायिक रूप से सफल रही।

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एक बच्चे के रूप में, फाल्के ने रचनात्मक कलाओं में बहुत रुचि दिखाई। अपने सपनों को आगे बढ़ाने के लिए, वह सर जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट, बॉम्बे (अब मुंबई), 1885 में। वहाँ रहते हुए उन्होंने फोटोग्राफी, लिथोग्राफी, वास्तुकला और शौकिया नाटक सहित कई तरह की रुचियों का पीछा किया, और वे जादू में भी माहिर हो गए। उन्होंने संक्षेप में एक चित्रकार, एक नाट्य सेट डिजाइनर और एक फोटोग्राफर के रूप में काम किया। प्रसिद्ध चित्रकार रवि वर्मा के लिथोग्राफी प्रेस में काम करते हुए, फाल्के हिंदू देवताओं के वर्मा के चित्रों की एक श्रृंखला से काफी प्रभावित थे, एक ऐसा प्रभाव जो फाल्के द्वारा बाद में बनाई गई पौराणिक फिल्मों में विभिन्न देवी-देवताओं के अपने चित्रण में स्पष्ट था।

इसके अलावा कुछ तथ्य के अनुसार आलम आरा को भी भारत की प्रथम फ़िल्म में अंकित किया जाता हैं। आज वर्तमान समय मे जो बड़े पर्दे पर रंगीन फ़िल्म देख रहे हैं उनके पीछे बड़े प्रयशो का योगदान हैं। दादा साहब फाल्के पुरुष्कार जो फ़िल्म जगत के मशहूर कलाकार रजनीकांत जी को दिया गया हैं। इस पुरस्कार का नाम दादा साहेब के नाम पर ही पड़ा क्योंकि भारत की पहली फ़िल्म के पीछे उनकी अहम भूमिका रही हैं। 

दादा साहब फाल्के पुरुस्कार क्या हैं?

1908 में फाल्के और एक साथी ने फाल्के के आर्ट प्रिंटिंग एंड एनग्रेविंग वर्क्स की स्थापना की, लेकिन उनके बीच मतभेदों के कारण व्यवसाय विफल हो गया। यह फाल्के की मूक फिल्म द लाइफ ऑफ क्राइस्ट (1910) को देखने का मौका था जिसने उनके करियर में एक महत्वपूर्ण मोड़ दिया। फिल्म से बहुत प्रभावित हुए, फाल्के ने इसे अपने मिशन के रूप में देखा कि वह सब कुछ भारतीय था जो चलती तस्वीर परदे पर था। 

वह ब्रिटिश अग्रणी फिल्म निर्माता सेसिल हेपवर्थ से शिल्प सीखने के लिए 1912 में लंदन गए। 1913 में उन्होंने भारत की पहली मूक फिल्म, राजा हरिश्चंद्र, हिंदू पौराणिक कथाओं पर आधारित एक काम जारी किया। फाल्के द्वारा लिखित, निर्मित, निर्देशित और वितरित की गई फिल्म, भारतीय सिनेमाई इतिहास में एक बड़ी सफलता और एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर थी। इसी तरह महत्वपूर्ण, उन्होंने अपनी फिल्म भस्मासुर मोहिनी (1913) में एक महिला अभिनेता को प्रमुख भूमिका में पेश किया, जब पेशेवर अभिनय महिलाओं के लिए वर्जित था।

फाल्के ने कई साझेदारों की मदद से 1917 में हिंदुस्तान फिल्म कंपनी की स्थापना की और कई फिल्मों का निर्माण किया। एक प्रतिभाशाली फिल्म तकनीशियन, फाल्के ने कई तरह के विशेष प्रभावों के साथ प्रयोग किया। पौराणिक विषयों और ट्रिक फोटोग्राफी के उनके रोजगार ने उनके दर्शकों को प्रसन्न किया। उनकी अन्य सफल फिल्मों में लंका दहन (1917), श्री कृष्ण जन्म (1918), सैरंदरी (1920) और शकुंतला (1920) थीं।

आशा करते हैं आज की इस पोस्ट के माध्यम से आपको प्राचीन फ़िल्म जगत के बारे में पर्याप्त जानकरी मिली होगी। व सबसे पहली फ़िल्म कौनसी थी, इसके बारे में भी पर्याप्त जानकारी हासिल हुई होगी। अगर आज आप अपने घर बैठे बड़ी स्क्रीन पर फ़िल्म देख रहे हैं तो उसका कहि न कही योगदान सिनेमा जगत के पुराने इतिहास से हैं। फ़िल्म पुरुस्कारों को ध्यान में रखते हुए इन्हें विभिन्न श्रेणी में वर्गीत किया गया हैं। 

  • जैसे ऑस्कर फ़िल्म fare पुरुस्कार
  • दादा साहेब फाल्के पुरस्कार

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