Essay on chhath puja छठ पूजा पर निबंध

हमारे देश में हिंदू धर्म में अनेक प्रकार के त्योहार समय-समय पर आते ही रहते हैं। जिनका अपना अलग ही महत्व होता है। ऐसे ही हमारे पूर्वी राज्य का प्रमुख त्योहार छठ पूजा भी होता है। यह हिंदुओं की आस्था का बहुत प्रमुख त्योहार माना जाता है। बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र में यह त्यौहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से छठ पूजा के निबंध के बारे में बताने जा रहे हैं, साथ ही इसके महत्व पूजा किस तरह से की जाती है,  इन सब के बारे में भी बताने जा रहे हैं…

Essay on chhath puja छठ पूजा पर निबंध

प्रस्तावना

दोस्तो आप जानते हो कि हमारे हिंदू धर्म में अनेक प्रकार के त्योहार हमारे देश में मनाए जाते हैं, इसीलिए हमारे देश की एक अलग ही पहचान है क्योंकि यहां पर सभी धर्मों के लोग सभी त्यौहारों को बड़े भाई सारे की भावना के साथ में मनाते हैं। छठ पूजा का त्यौहार हिंदू धर्म का सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है। कहते हैं इस दिन भगवान सूर्य और छठ माता की पूजा की जाती है।

छठ पूजा के दिन सभी श्रद्धालु गंगा नदी में स्नान करते हैं और छठ माता की पूजा करते हैं।शास्त्रों के अनुसार तो इस दिन छठी माता की पूजा करके सूर्य भगवान को लोग धन्यवाद करने के लिए भी इस त्योहार को मनाते हैं। उसके बाद अपने अच्छे स्वास्थ्य व संतान की दीर्घायु की कामना भी करते हैं।बिहार झारखंड और उत्तर पूर्व के उत्तर प्रदेश राज्य में इसकी रौनक अलग ही देखने को मिलती है। यह त्यौहार 5 दिन का त्यौहार होता है। दिवाली के 2 दिन बाद से इस त्यौहार की शुरुआत हो जाती है।

कब होती है छठ पूजा

छठ पूजा का त्योहार दिवाली के 2 दिन बाद से शुरू हो जाता है और यह प्रतिवर्ष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को आता है। दिवाली के 2 दिन बाद इस त्यौहार की जब शुरुआत होती है तो इसको शुरु नहाए धोए से किया जाता है। हमारे हिंदू पंचांग के अनुसार इस त्यौहार की शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि सप्तमी तिथि तक होती है। चतुर्थी तिथि के दिन को खरना के नाम से जानते हैं।

इस दिन लोग व्रत रखते हैं और खीर बनाते हैं। खीर प्रसाद के लिए चीनी कि नहीं बनाई जाती बल्कि गुड़ या गन्ने के रस की बनाई जाती है। फिर शाम को सूरज को अर्घ्य देने के बाद में उसी खीर को भोजन के साथ प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। छठ के दिन छठ माता की पूजा की जाती है। यह पूजा किसी भी नदी या तालाब के किनारे पर होती है।

पूजा के बाद छठ माता को शाम के समय में गाय के दूध और जल से अर्घ्य देकर अपनी मनोकामना को पूरी करके इस व्रत को पूर्ण किया जाता है। छठ पूजा का व्रत कठिन तपस्या वाला होता है क्योंकि छठ पूजा का व्रत पति और अपनी संतान की लंबी आयु की कामना के लिए सभी महिलाएं व पुरूष भी करते हैं। Also Read: Essay on global warming ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध

छठ माता की उत्पत्ति की कहानी

छठ पर्व की अनेकों पौराणिक मान्यताएं हैं और उसकी उत्पत्ति के विषय में भी अनेकों कहानियां बताई गई हैं छठी माता को सूर्य देव की बहन माना जाता है। छठ पूजा की कहानी के अनुसार छठ माता को भगवान की पुत्री देवसेना बताया गया है। यह प्रकृति के छठवें अंश से प्रकट हुई थी इसी वजह से इनको छठ माता कहा जाता है।

जो भी मनुष्य अपनी संतान की कामना सच्चे मन से रखकर इस व्रत को पूरी सादगी के साथ करता है तो उनको बहुत लाभ मिलता है। और उसकी मनोकामनाएं पूरी होती है। पौराणिक धार्मिक ग्रंथों की मान्यता के अनुसार भगवान राम जब अयोध्या से वापस आए थे तो माता सीता के साथ मिलकर कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य की उपासना की थी इसीलिए इस त्यौहार को सीता माता के द्वारा की गई पूजा से भी जोड़ा जाता है।

छठ पूजा का महत्व

छठ पूजा का हमारे हिंदू धर्म में बहुत महत्व बताया गया है कहा जाता है कि इस व्रत को पति की लंबी आयु और संतान की प्राप्ति के लिए इसके अलावा घर में सुख शांति के लिए किया जाता है। इसीलिए इस त्यौहार का महत्व 4 गुना और अधिक बढ़ जाता है। छठ पूजा का त्योहार मुख्य रूप से बिहार में मनाया जाता है। 

छठ के व्रत का पूजा का विधान

छठ का त्यौहार चतुर्थी तिथि से प्रारंभ होता है और सप्तमी तिथि को खत्म होता है। इन 4 दिनों में इसकी पूजा का बहुत अधिक महत्व है। चार दिनों की होने वाली पूजन निम्न प्रकार से होती है..

पहला दिन नहाए खाय – सबसे पहले इस व्रत के दिन नहाय धोकर कर के साफ सफाई करना प्रमुख होता है और शुद्ध भोजन किया जाता है।

दूसरे दिन खरना – दूसरे दिन खरना की विधि हो होती है। इस दिन व्यक्ति पूरे दिन का उपवास रखते हैं और शाम को गन्ने के रस या गुड़ से बनी हुई चावल की खीर को खाते हैं।

तीसरा दिन शाम का अर्ध्य – छठ पूजा के तीसरे दिन सूर्य को पूरे दिन का लोग उपवास रखकर शाम के समय में ढलते हुए सूरज को सूरज जी को जल चढ़ाते हैं और जो पूजा सामग्री होती है,उसको एक लकड़ी के पिटारे में रखकर नदी के किनारे या तालाब पर लेकर जाते हैं। छठी मैया के गीत गाते हैं और कहानी सुनते है।प्रसाद के रुप में सभी सामानों को लोगों को बांट देते हैं।

चौथे दिन का सुबह का सूर्य अर्ध्य – छठ पूजा के अगले दिन सप्तमी तिथि को सूर्य की पहली किरण को अर्ध्य दिया जाता है। इसके बाद में छठी माता को प्रणाम करके अपनी संतान की रक्षा की प्रार्थना की जाती है, और सभी लोगों को फिर से प्रसाद वितरण किया जाता है।

Conclusion

आज आपको इस आर्टिकल के माध्यम से छठ पूजा पर निबंध के बारे में जानकारी दी है। हमको उम्मीद है कि आपको यह जानकारी पसंद आई होगी। इसी तरह की जानकारी के लिए आप हमारी वेबसाइट से जुड़े रह सकते हैं और यह जानकारी पसंद आए तो कमेंट करके जरूर बताएं।