हमारे प्राचीन और सभी धार्मिक ग्रंथों में चारों युग सतयुग, द्वापर, त्रेता, कलयुग का एक निश्चित समय के अनुसार विभाजन किया गया है। हर युग में भगवान ने पृथ्वी पर किसी न किसी रूप में अवतार लेकर धरती को असुरों से मुक्त किया है। क्योंकि जब हमारी पृथ्वी पर अधर्म और अत्याचार बढ़ जाते हैं। ऐसे समय में भगवान किसी न किसी रूप में अवतार लेते ही हैं, जैसे त्रेतायुग में भगवान राम का अवतार हुआ था।
उसी प्रकार द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण का अवतार हुआ था। भगवान श्री कृष्ण ने इस धरती पर संपूर्ण राक्षसों का नाश किया। सभी बुराइयों पर विजय प्राप्त की, सबसे प्रमुख भगवान कृष्ण की लीलाएं बचपन में रही थी। उनमें से सबसे प्रमुख माखन चोर की लीला थी। आज हम आपको इस आर्टिकल के द्वारा भगवान श्री कृष्ण के जीवन से जुड़ी हुई कुछ महत्वपूर्ण बातों के बारे में जानकारी देने वाले हैं। भगवान श्री कृष्ण ने अपने जीवन में किस तरह से सभी दानवों को इस धरती पर मारकर मोक्ष प्रदान कर दिया था। चलिए जानते हैं जन्माष्टमी के निबंध के बारे में जानकारी…

प्रस्तावना
हमारे हिंदू धर्म संस्कृति में सबसे प्रमुख त्योहारों में से जन्माष्टमी का त्योहार भी एक प्रमुख त्योहार होता है। जन्माष्टमी के 8 दिन पहले से ही सभी जगह मंदिरों में तैयारियां होने लग जाती है। जन्माष्टमी का पर्व पूरे देश में धूमधाम के साथ मनाया जाता है। जन्माष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था, इसीलिए जन्माष्टमी को मनाया जाता है। मुख्य रूप से जन्माष्टमी का त्यौहार बड़े स्तर पर मथुरा, वृंदावन में मनाया जाता है, क्योंकि यह भूमि भगवान श्री कृष्ण की जन्म स्थली रही है, इसलिए यह उत्सव तो यहां पर एक महीने पहले से ही शुरू हो जाता है। जन्माष्टमी के त्यौहार का बहुत महत्व है।
भगवान श्री कृष्ण का जन्म
भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि को हुआ था, इसीलिए इस तिथि को श्री कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। भगवान कृष्ण का जन्म मथुरा में कंस के कारागार में हुआ था। जन्म लेने के बाद भगवान श्री कृष्ण को इनके पिता वसुदेव जी नंद गांव में नंद बाबा और मां यशोदा के पास में छोड़ आए थे, इसलिए भगवान कृष्ण के 2 माताएं थी, जन्म देने वाली माता देवकी थी और इनका पालन-पोषण नंद बाबा के यहां हुआ था तो इनको पालने वाली माता मां यशोदा थी।भगवान ने अपने बचपन मे बहुत सी लीलाएं की।
क्यों मनाई जाती है जन्माष्टमी
जैसा कि आप सब कुछ पहले भी बता चुके हैं कि हमारे हिंदू धर्म में सभी लोग सनातन संस्कृति से जुड़े हुए हैं और आज हमारे देश में अधिकतर लोग अपने इष्ट के रूप में भगवान श्री कृष्ण को ही पूछते हैं सबसे अधिक आज भारत के घरों में भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप की पूजा की जाती है। जिस को लड्डू गोपाल कहा जाता है। भगवान श्री कृष्ण के जीवन से जुड़ी हुई बहुत ही रोचक और प्रसिद्ध घटनाओं को याद करके, इसके अलावा श्री कृष्ण के जन्म दिवस के रूप में जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। यह पूरे धूमधाम और उत्साह के साथ में मनाते हैं।
जन्माष्टमी पर्व का महत्व
भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिन का पूरे देश में बहुत ही महत्व है। श्री कृष्ण के द्वारा दिया गया गीता में उपदेश बहुत ही प्रभावशाली था। उन्होंने कहा कि “जब-जब धर्म की हानि होगी और अधर्म बहुत अधिक इस पृथ्वी पर बढ़ जाएगा, तब मैं इस पृथ्वी पर जन्म लूंगा”। इसलिए कहते ना बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों ना हो वह एक दिन खत्म होकर ही रहती है।
निरंतर काल तक सनातन धर्म की आने वाली सभी पीढ़ियां अपने आराध्य के चुनाव को सही तरीके से जान पाएंगी और भगवान श्री कृष्ण के द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलने का पूरा प्रयास करेंगे, इसीलिए हमारे हिंदू धर्म में श्री कृष्ण जन्माष्टमी त्योहार का महत्त्व हमारी सभ्यता और संस्कृति को भी दर्शाता है। हमारी युवा पीढ़ी को भारतीय सभ्यता और संस्कृति का सामना कराने के लिए इस तरह के तीज त्योहारों का मनाया जाना भी बहुत जरूरी है, क्योंकि अगर यह त्यौहार नहीं होंगे तो युवा पीढ़ी देश की सभ्यता संस्कृति को सही से नहीं पहचान पाएंगे।
श्री कृष्ण एक मार्गदर्शक के रूप में
भगवान श्री कृष्ण के द्वारा की गई सभी बाल लीलाएं सभी के लिए आज मार्गदर्शक के रुप में जानी जाती हैं। उनकी सभी बाल लीलाओं से अनुमान लगाया जा सकता है। भगवान श्रीकृष्ण निरंतर चलते रहने और धरती पर अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ही उनका जन्म हुआ था। भगवान ने जन्म लेने के बाद सभी एक के बाद एक राक्षसों का वध किया था।
भगवान श्री कृष्ण शक्तिशाली होने के बाद भी वे है,सामान्य मनुष्य की तरह व्यवहार सभी के साथ में करते थे। मटकी फोड़, माखन चोरी वालों के साथ दिन भर गाय चराना, उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं की सभी भूमिकाओं को भगवान श्री कृष्ण ने आनंद के साथ में जिया है।
श्री कृष्ण को प्यार प्रेम का प्रतीक माना जाता है। सूफी संतों के अनेक पदों में राधा और अन्य गोपियों के साथ में श्री कृष्ण के प्रेम और वियोग की लीला का बहुत ही सुंदर चित्रण देखने को मिलता है। इसके बाद में भगवान श्री कृष्ण द्वारकाधीश बने, द्वारका में राजा पद पर रहते हुए उन्होंने महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सारथी बनकर उनको गीता का उपदेश भी दिया और अर्जुन को उनके जीवन के कर्तव्यों के महत्व को भी अच्छे से समझाया और महाभारत के युद्ध में जीत भी दिलवाई थी।
Conclusion
आज हमने आपको इस आर्टिकल के द्वारा जन्माष्टमी पर निबंध के बारे में जानकारी दी है। अगर आपको यह जानकारी पसंद आए तो उसको लाइक शेयर जरूर कीजिए, और कमेंट करके भी बताइए। इससे और अधिक जानकारी के लिए आप हमारी वेबसाइट से भी जुड़ सकते हैं।