प्राचीन समय से ही भारत अनेकों धर्मों, रीति रिवाजों व त्योहारों के लिए जाना जाता है। यहाँ हर एक धर्म व त्योहार की अपनी विशेष परंपरा है। इसीलिए भारतीय संस्कृति को विश्व मे एक अलग वर्चस्व प्राप्त है। आज की इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको एक ऐसे ही महत्वपूर्ण त्योहार के विषय मे जानकारी देंगे, जिसे हिन्दू धर्म मे एक पवित्र पर्व के रूप मे मनाया जाता है। जी हाँ, आज हम आपको करवाचौथ क्यों मनाया जाता है? इसके विषय मे जानकारी देंगे। तो बिना देरी किए शरू करते है, आज की इस पोस्ट को।

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करवाचौथ क्या है?
करवाचौथ दो शब्दों से मिलकर बना एक भव्य शब्द है, जिसे मिट्टी के बर्तन करवे के रूप मे जाना जाता है। अथवा चौथ का अर्थ चतुर्थी से लिया गया है। हिन्दू सभ्यता के अंतर्गत इस पर्व को प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है। करवाचौथ पति पत्नी के बीच प्रेम के बंधन की दौर को मजबूत करने के लिए है। जिसके लिए पत्नी अपने पति के लिए व्रत रखती है। इसीलिए इस त्योहार को विश्वास व स्नेह का प्रतीक मन जाता है।
इस पर्व का इतिहास काफी प्राचीन समय से चलता या रहा है, ओर इसे मेहंदी पर्व के नाम से भी जाना जाता है। इस त्योहार पर नव विवाहित युवती अपने हाथों पर गहरी मेहंदी लगाकर अपने पति परमेश्वर की लंबी आयु की कामना करती है। बल्कि कुछ तथ्यों की माने तो इस त्योहार को प्राचीन समय से ही अलग मान्यता दी गई है, जिसके चलते आज इसे सभी बड़े ही हर्ष व उल्लास के साथ मनाते है।
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करवाचौथ के त्योहार से पति-पत्नी मे स्नेह कैसे बढ़ता है?
विवाह के एकात्मक पहलू में पति-पत्नी का पूर्ण व्यक्तित्व शामिल है, एक ऐसा प्रेम जिसमें पति और पत्नी के मन, हृदय, भावनाओं, शरीर, आत्मा और आकांक्षाओं को समाहित किया जाता है। उन्हें एकात्मक प्रेम और निष्ठा में निरंतर बढ़ने के लिए कहा जाता है ताकि वे अब दो नहीं बल्कि एक तन रह जाएं। उनके पारस्परिक आत्म-दान को ईश्वर के द्वारा विवाह संस्कार में मजबूत और आशीषित किया गया है। इस संस्कार में वर और वधू एक दूसरे को जो सहमति देते हैं, उस पर भगवान मुहर लगाते हैं।
इसी प्रेम की डोर को आगे बढ़ाने के लिए पति पत्नी के बीच की पवित्रता बढ़ती रहती हैं, जिसके मात्र इस व्रत को सबसे अधिक महत्व दिया जाता हैं। हमारे शस्त्रों मे ऐसे अनेकों किस्से शामिल हैं, जहां से पत्नी प्रेम ने अपने पति की सेवा व स्नेह से भगवान तक का मन जीता हैं। इसके अलावा इस व्रत को करने के कुछ प्रमुख नियम हैं,जैसे कि निर्जला अक़दर्शी के समान बिना कुछ खाये पिये भोर में स्नान कर चांद तक कुछ न खाना। वही दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्रो में करवे का पूजन होता हैं। जिससे आने वाली ऋतु की आशंका का भी अनुमान लगाया जाता हैं।
करवाचौथ क्यों मनाया जाता है?
करवाचौथ एक दिवसीय त्योहार है जहां विवाहित हिंदू महिलाएं अपने पति के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए उपवास रखती हैं। वे सूर्योदय के समय अपना उपवास शुरू करते हैं, जो पूरे दिन चंद्रोदय तक जारी रहता है। महिलाएं कुछ भी नहीं खाती-पीती हैं और भगवान शिव की आराधना करती हैं। वे विभिन्न प्रसाद बनाने और चंद्रमा को देखने के बाद अपना उपवास तोड़ती हैं, जो हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार सबसे महत्वपूर्ण खगोलीय पिंडों में से एक है। महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं और भगवान शिव से उन्हें किसी भी नुकसान या कठिनाई से बचाने के लिए कहती हैं। यह भी माना जाता है कि यह त्योहार उनके वैवाहिक जीवन में शांति, खुशी और आनंद लाता है।
जैसा की हमने ऊपर वर्णन किया है, कि भारत एक परंपरागत संस्कृति को मानने वाले देश है, इसीलिए यहाँ हर एक धर्म की अपनी एक विशेषता है। ओर इन सभी त्योहारों मे से एक करवाचौथ का त्योहार बहुत अहम है। इसके अलावा न केवल महिलाओ मे बल्कि पुरुषों मे भी इस त्योहार को लेकर काफी स्नेह व लगाओ देखा जाता है। जिसके लिए एक विशेष व्यक्ति की पत्नी उसके लिए न केवल व्रत रखती है, बल्कि मेहंदी रस्म के साथ साथ उसकी दीर्घ आयु की कामना भी करती है।
इस पर्व के मौके पर महिलाये करवाचौथ की कथा का पाठ भी करती है, जिसके लिए इस पर्व पर उसे अधिक लाभदायक माना जाता है। प्राचीन काल मे हुई वीरवती की कहानी पर आधारित इस कथा का सुभारंभ किया जाता है। आज के इस नवीन युग मे जिस प्रकार से सजने स्वरने के साथ साथ सेल्फ़ी की परंपरा सामने आई है, उसे देखते हुए कथा पाठ आदि की तरफ काफी कम रुझान देखने को मिलता है। आशा करते है, आज की इस पोस्ट के माध्यम से आपको करवाचौथ के व्रत के विषय मे विस्तार से जानकारी मिली होगी। व इसे क्यों मनाया जाता है, इसकी भी सटीक जानकारी हासिल हुई होगी। ऐसी ही पोस्टों को पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक कर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते है।