PPP full form kya hota hai – जानिए इसकी जानकारी विस्तार से

अगर आप व्यापार के संबंध में जानकारी रखते हैं और इसके संबंध में और अधिक जानकारी जानने का प्रयास कर रहे हैं तो आप एक शब्द से अवगत हुए होंगे जिसे PPP full form से जानते हैं इस शब्द का क्या अर्थ होता है और इस का फुल फॉर्म क्या है इसके बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी नीचे दी गई है। 

हम समझते हैं कि व्यापार करने वाले हर व्यक्ति को कम से कम इस शब्द का फुल फॉर्म पता होना चाहिए ताकि वह व्यापार के संबंध में अधिक जानकारी एकत्रित कर सके अगर आप भी इसके संबंध में अधिक जानकारी एकत्रित करना चाहते हैं तो आपको PPP full form विस्तार पूर्वक जानकारी नीचे दी गई है। 

PPP full form

PPP full form

जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है , यह पब्लिक मतलब सरकारी कंपनी और किसी प्राइवेट कंपनी के बीच पार्टनरशिप को दर्शाता है। इसका फूल फोरम PPP – PUBLIC PRIVATE PARTNERSHIP होता है।

देश के लिए जरूरी किसी प्रोजेक्ट के लिए जब सरकार को यह जरूरत महसूस होती है, कि उसके पास जरूरी पैसा , उस उस काम की दक्षता और उस काम के लिए  स्किल्ड मैनपॉवर नहीं है, तो वह किसी प्राइवेट फर्म के साथ, पार्टनरशिप करती है ,जो इस काम को करने में एक्सपर्ट हैं । आप इसे सरल शब्दों में समझ सकते हैं कि यह सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र के बीच वित्त पोषण , डिजाइनिंग और अवसंरचना सुविधाओं के विकास में एक साझेदारी है । 

पीपीपी मॉडल के प्रकार?

अब बात करते हैं पीपीपी मॉडल के प्रकारों की कि सरकार किन प्रकारों से निजी क्षेत्रों से भागीदारी कर सकती है। पीपीपी मॉडल पांच प्रकार का होता है। आइए, जानते हैं इनके बारे में।

1. बिल्ड-ओन-ऑपरेट-ट्रांसफर (BOT)

इसके तहत सरकार द्वारा निजी कम्पनी को एक निश्चित समय सीमा के लिए वित्त, वित्त, निर्माण, संचालन का अधिकार सौंपा जाता है। जब इसकी समय सीमा पूरी हो जाती है तो समस्त अधिकार पुन: सरकार या सार्वजनिक कम्पनी के पास आ जाते हैं।

2. बिल्ड-ओन-ऑपरेट (BOO)

इसके तहत निजी कम्पनी या साझेदार के पास अनुबंधित समय सीमा के दौरान ढांचागत परियोजना के डिज़ाइन, निर्माण एवं परिचालन की समस्त ज़िम्मेदारी रहती है। साथ ही निजी कंपनी को परियोजना में किये गए निवेश को पुनः प्राप्त करने हेतु एक निश्चित अवधि तक का समय दिया जाता है। इस अवधि के बाद सरकार पुन: इसे अपने नियंत्रण में ले लेती है।

3. बिल्ड-ऑपरेट-लीज़-ट्रांसफर (BOLT)

इसके तहत निजी साझेदार द्वारा एक अनुबंध अवधि तक सार्वजनिक संपत्ति का संचालन किया जाता है।

लेकिन सम्पत्ति पर स्वामित्व केवल सार्वजनिक कम्पनी का ही होता है।

4. डिजाइन-बिल्ड-फाइनेंस-ऑपरेट-ट्रांसफर (DBFOT)

इसके तहत निजी साझेदार को सार्वजनिक कम्पनी के निर्देशों पर कार्य करना होता है। निजी कम्पनी बुनियादी ढांचे का निर्माण करती है और निश्चित राशि तक सभी जोखिमों के लिए स्वयं जिम्मेदार होती है।

5. लीज-डेवलप-ऑपरेट (LDO)

इसके तहत सरकार या प्राइवेट पार्टनर के पास संसाधनों का मालिकाना हक होता है और प्राइवेट प्रमोटर से लीज के दौरान पैसा मिलता है। एयरपोर्ट आदि इसी मॉडल के तहत कार्य करते हैं।

PPP मॉडल की आवश्यकता क्यों है?

सरकार द्वारा पीपीपी मॉडल को लागू करने के पीछे का मुख्य उद्देश्य अपने राजस्व का बड़ा हिस्सा परियोजनाओं में न लगाकर इसके लिए विकल्प तलाशना होता है,  ताकि राजस्व का बड़ा हिस्सा अन्य योजनाओं के लिए खर्च किया जा सके । दूसरा पहलू यह भी रहता है कि सरकार अपनी घोषणाओं को पूरा करने के लिए भी इस मॉडल को अपनाती है ताकि समय पर गुणवत्तापूर्ण कार्य हो सके।

इसके साथ ही पीपीपी मॉडल की आवश्यकता पर इसलिए भी बल दिया जाता है क्योंकि निजी क्षेत्र को अपेक्षाकृत ज्यादा अनुभवी , गुणवत्तापूर्ण कार्य एवं सेवा के लिए जाना जाता है , ऐसे में किसी परियोजना के बेहतर रूप से पूर्ण होने की संभावना बढ़ जाती है ।

PPP मॉडल के सामने आने वाली चुनौतियां

पीपीपी मॉडल के सामने आने वाली चुनौतियां मॉडल को लेकर चुनौतियों की बात की जाए तो यह संभावनाओं पर अधिक निर्भर करती है। जैसे कि किसी सार्वजनिक कम्पनी द्वारा निजी कम्पनी को किसी परियोजना में साझेदार बनाया जाता है तो कार्य के समय पर पूरे होने, गुणवत्ता को बनाए रखने, सेवा व संचालन का सही ढंग से होने के साथ ही आम जन के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़े, जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही विपक्ष के विरोध और आमजन को विश्वास में लेने जैसी चुनौतियां भी सामने आती है।

PPP मॉडल लाने का उद्देश्य क्या हैं?

पीपीपी मॉडल लाने का मुख्य उद्देश्य किसी परियोजना को बेहतर ढंग से पूरा करने के लिए निजी भागीदारी को बढ़ाना होता है। इसके तहत सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनीज द्वारा निजी कम्पनियों को किसी परियोजना में भागीदार बनने के लिए आमंत्रित किया जाता है, ताकि उस परियोजना में लगने वाली पूंजी के लिए सरकार को मशक्क्त नहीं करनी पड़े और परियोजना के लिए आवश्यक संसाधन, निजी क्षेत्र का अनुभव भी काम आ सके।

जब कोई परियोजना शुरू की जाती है या फिर उसकी घोषणा होती है तो उसमें बहुत खर्च आता है और सरकार के पास राजस्व एवं संसाधनों की कमी के चलते उसे अन्य सहयोगियों की आवश्यकता पड़ती है, ऐसे में सरकार द्वारा निजी साझेदारी आमंत्रित की जाती है। इससे न सिर्फ समय पर काम पूरा होता है बल्कि गुणवत्ता में भी बढ़ोतरी होती है और सरकार पर वित्त का दबाव भी नहीं रहता।

वर्तमान में रेलवे, हवाई अड्डो, हाइवे, बांध बनाने आदि क्षेत्रों में पीपीपी मॉडल अपनाया जा रहा है। अब सरकार शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में भी इस ओर कदम बढ़ाने जा रही है।

Conclusion

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