स्वामी विवेकानंद की जीवनी Swami vivekanand ki jivani

स्वामी विवेकानंद के बारे में आज कौन नहीं जानता है। क्या आपने कभी अपने जीवन में स्वामी विवेकानंद के बारे में कहीं पढ़ा है या फिर कुछ उनके बारे में सुना है। अगर कभी भी कहीं भी सुना है या देखा है तो आप भली-भांति जानते होंगे कि स्वामी विवेकानंद कौन थे और उनका संपूर्ण भारत वर्ष में किस तरह का योगदान अपने जीवन काल में रहा है। स्वामी विवेकानंद ने अपनी सूझबूझ से ही संपूर्ण भारत वर्ष को ही नहीं बल्कि संपूर्ण संसार में अपने आध्यात्मिक ज्ञान से लोगों को जागृत किया है।

 स्वामी विवेकानंद जब शिकागो में धर्म सम्मेलन के लिए गए थे और उनको वहां पर धर्म और संस्कृति का वर्णन करने के लिए 2 मिनट का समय दिया गया था। उन्होंने अपनी तेज बुद्धि और आध्यात्मिक ज्ञान का प्रयोग करते हुए संबोधन कुछ इस तरह से किया कि वहां पर बैठे हुए हर व्यक्ति को वह संबोधन सुनना ही पड़ा था। मुख्य रूप से जब स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषण की शुरुआत की थी तो उन्होंने कहा था कि “मेरे अमेरिकी बहनों और भाइयों” इससे अपना भाषण शुरू किया था। इस तरह के संबोधन को सुनकर वहां के सभी लोगों का उन्होंने दिल जीत लिया था।

स्वामी विवेकानंद की जीवनी swami vivekanand ki jivani

उनके इस तरह के संबोधन के पहले वाक्य से उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस भी बहुत प्रभावित हुए थे क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में अपने गुरु से ही सीखा था, कि जीवो में ही स्वयं परमात्मा निवास करते हैं, इसीलिए मानव जाति का अर्थ मनुष्य और जो भी जरूरतमंद लोग हैं, उनकी सहायता करना या सेवा द्वारा ही परमात्मा की सेवा की जा सकती है।

स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु की मृत्यु के बाद में बहुत बड़े स्तर पर भारतीय उपमहाद्वीपो का भी दौरा किया था। स्वामी विवेकानंद भारत में एक देशभक्ति सन्यासी के रूप में जाने जाते हैं। उनके जन्मदिन को आज भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस के रुप में मनाए जाने लग गया। आज हम किस आर्टिकल के द्वारा ही आप सभी को स्वामी विवेकानंद के जीवन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां देने जा रहे हैं,चलिए जानते हैं स्वामी विवेकानंद की जीवनी के बारे में जानकारी..

स्वामी विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। इनका बचपन में नाम नरेंद्र दास दत्त हुआ करता था। उनके पिता जी का नाम विश्वनाथ दत्त था।  इनके पिताजी कोलकाता से बहुत प्रसिद्ध वकील हुआ करते थे। उनके दादाजी का नाम दुर्गा चरण था जो संस्कृत और फारसी के बहुत बड़े विद्वान थे। स्वामी विवेकानंद ने अपने परिवार को 25 साल की उम्र में छोड़कर साधु का रूप धारण कर लिया था अर्थात यह साधु बन गए थे। 

स्वामी विवेकानंद की माता भुवनेश्वरी बहुत ही धार्मिक विचारों वाली महिला थी। उनका अधिकांश समय भगवान शिव की पूजा अर्चना करने में ही व्यतीत होता था। स्वामी विवेकानंद के पिता और मां के धार्मिक प्रगतिशील और तर्कसंगत रवैए ने उनकी सोच और व्यक्तित्व को एक सही आकार देने में मदद की थी। स्वामी विवेकानंद बचपन से ही बहुत तेज बुद्धि और नटखट स्वभाव वाले थे। वे अपने दोस्तों के साथ में अपने गुरुजनों के साथ भी शरारत करने से नहीं चूकते थे। इनका पूरा परिवार धार्मिक प्रवृत्ति में होने के कारण स्वामी विवेकानंद बचपन से ही धार्मिक रहे।

इनकी माता भुवनेश्वरी के पास में हमारे भारतीय प्राचीन ग्रंथ रामायण, महाभारत आदि की कथा सुनने के लिए उनके घर पर लोग आते थे।स्वामी विवेकानंद के मन के अंदर धर्म और आध्यात्मिक ज्ञान की जागृति अपने बचपन से ही शुरू हो गई थी। अपने माता-पिता के धार्मिक वातावरण और संस्कारों के कारण उनके मन में बचपन से ही ईश्वर को जानने और उसको प्राप्त करने की जिज्ञासा होने लगी थी। वह हमेशा ईश्वर को जानने के अलग-अलग तरह के सवाल अपने माता-पिता से पूछते थे। Also Read: Shivangi joshi biography in hindi शिवांगी जोशी बायोग्राफी इन हिंदी

स्वामी विवेकानंद की शिक्षा

स्वामी विवेकानंद 1870 में ईश्वर चंद्र विद्यासागर मेट्रोपोलिटन संस्थान में अपने स्कूल की शिक्षा को शुरू किया था। स्वामी विवेकानंद एकमात्र ऐसे विद्यार्थी पर जिन्होंने प्रेसिडेंट कॉलेज में फर्स्ट डिवीजन अंक प्राप्त किए थे। इसके अलावा स्वामी विवेकानंद ने वेद, उपनिषद, भगवत गीता रामायण, महाभारत और अन्य पुराणों के अलावा भी हिंदू शास्त्रों में यह बहुत विशेष प्रकार की रूचि रखते थे। 

भारतीय शास्त्रीय संगीत में भी उन्होंने प्रशिक्षण हासिल किया था।इसके अलावा स्वामी विवेकानंद नियमित व्यायाम और अन्य प्रकार के खेलों में भी सम्मिलित होते थे। स्वामी विवेकानंद ने पश्चिम तक पश्चिम दर्शन यूरोपीय इतिहास आदि का भी अध्ययन असेंबली इंस्टिट्यूशन से किया था।  सन 1881 में स्वामी विवेकानंद ने ललित कला की परीक्षा को उत्तीर्ण किया था। उसके अलावा 1884 में इन्होंने कला विषय से ही ग्रेजुएशन की डिग्री को हासिल किया। फिर यह आगे वकालत की पढ़ाई करने चले गए।

स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस के प्रति निष्ठा

स्वामी विवेकानंद अपने बचपन से ही बहुत जिज्ञासु प्रवृत्ति के हुआ करते थे। वह अपने घर में अपने माता-पिता उसे भी कुछ इस तरीके के सवाल करते थे। उनका कोई जवाब उनके पास में नहीं होता था। एक बार उन्होंने महर्षि देवेंद्रनाथ से पूछा कि “क्या आपने कभी ईश्वरको देखा है” उनके इस सवाल को सुनकर महर्षि देवेंद्र नाथ खुद आश्चर्य में पड़ गए। उन्होंने इन की जिज्ञासा को शांत करने के लिए स्वामी विवेकानंद को रामकृष्ण परमहंस के पास में जाने की सलाह दे दी। 

जब रामकृष्ण परमहंस के पास में स्वामी विवेकानंद गए तो स्वामी जी स्वामी विवेकानंद से इतने प्रभावित हुए कि उनको अपना गुरु बना लिया और स्वामी विवेकानंद उनके द्वारा बताए हुए मार्ग पर आगे चलने लगे और गुरु और शिष्य के बीच का रिश्ता भी बहुत मजबूत होता चला गया।

रामकृष्ण मठ की स्थापना

स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस का 16 अगस्त 1886 को निधन हो गया था। उसके बाद स्वामी विवेकानंद ने बरहा नगर 1 मई 1897 को रामकृष्ण संघ की स्थापना के बाद में इसका नाम बदलकर रामकृष्ण मठ कर दिया गया। जब इन्होंने रामकृष्ण मठ की स्थापना की। उसके बाद संपूर्ण जीवन इन्होंने ब्रह्मचर्य और त्याग का व्रत ले लिया था और यह नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद बन चुके थे।

रामकृष्ण मठ का उद्देश्य

रामकृष्ण मठ की स्थापना का मुख्य उद्देश्य भारत के निर्माण के विभिन्न अस्पताल, स्कूल, कॉलेज, साफ सफाई के क्षेत्र में आगे कदम बढ़ाना था। इसके अलावा साहित्य दर्शन इतिहास के विद्वान स्वामी विवेकानंद ने अपनी प्रतिभा से सभी लोगों को अपना बना दिया था। यह सभी युवा वर्ग को नौजवानों के आदर्श बन चुके थे। इसके बाद स्वामी विवेकानंद ने सन 1896 में बेलूर मठ की स्थापना की। जिसमें भारतीय जीवन दर्शन को एक नया स्वरूप प्रदान कर दिया। इसके अलावा और दो मठों की स्थापना कॉलेज विवेकानंद के द्वारा की गई थी।

निष्कर्ष

आज हमने आपको इस आर्टिकल में स्वामी विवेकानंद की जीवनी के बारे में जानकारी दी है। उम्मीद है आपको हमारे द्वारा दी गई जानकारी पसंद आई होगी। इसी तरह की जानकारी के लिए आप हमारी वेबसाइट से जुड़ सकते हैं। इसके अलावा अगर यह जानकारी आपको पसंद आई कमेंट करके जरूर बताएं।