ट्रैन जिसे रेलगाड़ी के नाम से भी जाना जाता हैं भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हैं। सम्पूर्ण भारत मे फैले एक विशाल रेल जाल के तहत अर्थव्यवस्था को इस प्रकार से संशोधित किया गया हैं, जिसके चलते लाखो लोगो को रोजगार दिया गया हैं। परंतु कभी आपने सोचा हैं कि रेल का अविष्कार किसने किया व इसके इसके पीछे कितने वर्षों का योगदान हैं।।इन सभी जानकारियो के विषय मे आज की इस पोस्ट के माध्यम से चर्चा करेंगे। तो बिना देरी किये शरू करते हैं आज की इस पोस्ट को की रेल का अविष्कार कोनसे वर्ष में हुआ?

भारतीय रेलवेज विश्व का चौथा सबसे बड़ा रेलवे जाल हैं। यही नही बल्कि प्रत्येक दिन करोड़ो लोगो के यातायात का एक प्रमुख साधन हैं। भारत के इतिहास में सबसे बड़ा कदम रेलवे के रूप में उठाया गया जिसके चलते इसको संपूर्ण भारत में फैलाया गया। समान सामग्री के आयात निर्यात से लेकर पेट्रोल व डीजल को एक स्थान से दूसरे स्थान पर रेलगाड़ी की मदद से ही पहुचाया जाता हैं। हालांकि ट्रैन का निर्माण भारत मे सर्वप्रथम अंग्रेजी के नेतृत्व में किया गया, इसके बाद इसे धीरे धीरे पूरे भारतवर्ष में फैलाया गया।
ट्रैन के बारे में विस्तार से जानकारी लेने से पहले जानिए कि ट्रेन के आविष्कारक कौन हैं?
ट्रैन का अविष्कार किसने किया?
पहले भाप से चलने वाले इंजन का आविष्कार 1698 में थॉमस सेवरी ने किया था, हालांकि यह मशीन रेल वाहनों को चलाने के लिए नहीं थी। जबकि इंजन का उपयोग अपने इच्छित उद्देश्य (पानी बढ़ाने) के लिए किया जा सकता था, डिजाइन में कई गंभीर खामियां थीं। हालांकि, अन्य इंजीनियर और आविष्कारक इसे अपनी रचनाओं के लिए प्रेरणा के रूप में उपयोग करने में सक्षम थे।
यह भी पढिए: Netflix meaning in hindi नेटफ्लिक्स मीनिंग इन हिंदी
पहले स्व-चालित भाप इंजन का आविष्कार जेम्स वाट ने अपने सहायक विलियम मर्डोक की मदद से किया था, 60 से अधिक वर्षों के बाद सेवरी ने अपने डिजाइनों का परीक्षण किया। वे एक कामकाजी मॉडल बनाने में सक्षम थे, लेकिन उन्होंने पूर्ण पैमाने पर लोकोमोटिव का उत्पादन नहीं किया जो वैगनों को खींचने में सक्षम था। यह 1804 तक नहीं था कि रिचर्ड ट्रेविथिक द्वारा पूर्ण पैमाने पर लोकोमोटिव बनाया गया था। इस लोकोमोटिव ने 21 फरवरी 1804 को पहली बार भाप से चलने वाली रेल यात्रा पूरी की, जिसमें 5 गाड़ियां, 10 टन लोहा और 70 यात्री शामिल थे। दुर्भाग्य से, ट्रेविथिक के डिजाइनों में अभी भी कई बड़ी खामियां थीं, और उन्हें व्यापक रूप से अपनाया नहीं गया था। ट्रेविथिक का काम उस समय काफी हद तक अपरिचित हो गया था, और वह दरिद्र और अकेले मर गया।
ट्रेन का पुराना नाम क्या था?
रेल जिसे वर्तमान समय मे ट्रेन कहा जाता हैं, इसका प्राचीन नाम लुक दुक लोपतगामीनी था। जिसे ब्लैक ब्यूटी के नाम से भी जाना जाता था। अब तक के आविष्कारों मे सबसे बड़ी उपलब्धियों मे अंकित किये जानी वाले रेल के आविष्कार का एक अहम योगदान हैं।
निम्नलिखित 20 वर्षों में, इंजनों का निर्माण कई अन्वेषकों द्वारा किया गया, जिन्होंने प्रत्येक को डिजाइन के लिए अनुकूलन किया, ताकि कुछ ऐसा खोजने की कोशिश की जा सके जो व्यावसायिक उपयोग के लिए सफल और व्यवहार्य हो। जॉर्ज स्टीफेंसन ने अपने अग्रदूतों के डिजाइनों पर निर्माण किया, और लोकोमोशन नंबर 1 का निर्माण किया, जिसका इस्तेमाल स्टॉकटन और डार्लिंगटन के बीच दुनिया के पहले सार्वजनिक स्टीम रेलवे में किया गया था। उन्होंने एक कंपनी बनाकर अपनी सफलता का व्यवसायीकरण किया, जो वाणिज्यिक और सार्वजनिक परिवहन दोनों उद्देश्यों के लिए बिक्री के लिए लोकोमोटिव का उत्पादन करती थी।
और वह क्रांति 17 वीं शताब्दी के अंत में थॉमस सेवरी द्वारा पहले स्थिर भाप इंजन की शुरुआत के साथ आई। 1698 का यह आविष्कार बेहद सरल और कम शक्ति वाला था, और इस वजह से भाप के इंजनों को उस मुकाम तक पहुंचने में 60 साल से अधिक का समय लगा, जहां वे ट्रेनों को चलाने के लिए उपयोगी हो सकते थे। यह क्षण 1763 में आया जब जेम्स वाट ने थॉमस सेवरी और थॉमस न्यूकोमेन के सरल डिजाइन लिए और क्रैंकशाफ्ट पेश किया जो भाप की शक्ति को गोलाकार गति में बदल सकता था। इस आविष्कार ने आखिरकार दुनिया भर के अन्वेषकों को भाप इंजन को मशीन में बदलना शुरू कर दिया, जो सभी प्रकार और आकारों की कारों, ट्रेनों और नावों को शक्ति प्रदान कर सकता था।
इसके अलावा ट्रेन के बढ़ते जाल को देखते हुए, वर्ष 2002 मे दिल्ली मे मेट्रो के सबसे बड़े जाल को रूप दिया गया। जिसके चलते दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड को काफी रिहायत मिली। दिल्ली मेट्रो अपने आप मे राजधानी की सबसे बड़ी धरोवर हैं, जिसकी मदद से न केवल प्रदूषण नियंत्रित किया गया हैं, बल्कि लाखों लोगों के समय को भी बचाया गया हैं। आशा करते हैं, आज की इस पोस्ट के माध्यम से आपको रेल के बारे मे पर्याप्त जानकारी प्राप्त हुई होगी।